विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A का गठन जिस मकसद से विपक्षी दलों ने किया, उसकी राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। बीएसपी, एआईएमआईएम, वीआईपी और जन अधिकार पार्टी जैसे कई दल हैं, जो विपक्षी गठबंधन की सफलता को संदिग्ध बनाते दिखते हैं। बीआरएस और बीजेडी को किसी गठबंधन से कोई वास्ता ही नहीं।
हाइलाइट्स
- बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए बन सकता है एक और मोर्चा
- AIMIM, VIP, JAP और BSP साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं
- बंगाल में सीपीएम और कांग्रेस हैं टीएमसी से तालमेल के खिलाफ
- INDIA के साथ नीतीश कुमार का JDU, पर मन नहीं मिल रहा है

विपक्षी गठबंधन में बदलती रही है दलों की तालमेल
बिहार में अलग फ्रंट बनाएंगे INDIA से बाहर के विपक्षी दल
चर्चा है कि बिहार में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप), मुकेश सहनी की वीआईपी, मायावती की बीएसपी और ओवैसी की एआईएमआईएम लोकसभा चुनाव के लिए अलग गठबंधन बनाएंगे। हालांकि इस तरह का प्रयोग पिछले चुनावों में बिहार में ये दल कर चुके हैं। अगर ऐसा होता है तो विपक्षी वोटों के विभाजन में इनकी भूमिका एनडीए के पक्ष में होगी। ऐसा होने पर इंडिया के वोटों का बंटवारा एनडीए को मदद पहुंचाएगा। पप्पू यादव ने पहले कोशिश की थी कि उनकी पार्टी को भी विपक्षी गठबंधन में जगह मिल जाए। ओवैसी को भी इस बात की तकलीफ है कि उनकी पार्टी को विपक्षी गठबंधन में किसी ने पूछा तक नहीं। मुकेश सहनी तो एनडीए में जाने की अटकलों के बावजूद निषाद आरक्षण की मांग को लेकर अपनी जमीन मजबूत करने के लिए यात्रा पर हैं। बिहार के संदर्भ में ओवैसी की पार्टी इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में उसके पांच विधायक निर्वाचित हुए थे। हालांकि उनमें से चार बाद में आरजेडी के साथ चले गए। ओवैसी के मन में इस बात की भी खुन्नस हो सकती है। इसलिए लोकसभा चुनाव में वे विपक्षी गठबंधन का खेल बिगाड़ने के लिए कोई कसर शायद ही छोड़ें।
बंगाल में TMC से तालमेल के खिलाफ CPM और कांग्रेस
देश में विपक्षी एकता की पक्षधर कांग्रेस और सीपीएम नहीं चाहती कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ कई समझौता हो। दोनों टीएमसी से इतनी नाराज क्यों हैं, यह इससे ही समझा जा सकता है कि सागरदिगी विधानसभा सीट पर दोनों के साझा उम्मीदवार की जीत हुई तो टीएमसी ने उसे अपने पाले में कर लिया। पंचायत चुनाव में 50 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें बीजेपी के अलावा ज्यादातर कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थक थे। तीसरी वजह यह कि ममता बनर्जी तालमेल की स्थिति में एक-दो सीटें देकर इन्हें निपटाना चाहती हैं। टीएमसी के एक भरोसेमंद सूत्र के मुताबिक पार्टी ने लोकसभा की 30 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इसलिए टीएमसी दो सीटें ही लेफ्ट और कांग्रेस को देना चाहती है। सीपीएम ने तो अभी से विपक्ष की कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठकों से किनारा करना शुरू कर दिया है।
नीतीश को अपनी मर्जी के खिलाफ फैसला मंजूर नहीं होगा
नीतीश कुमार ने भले शुरू में विपक्षी एकता की बुनियाद डाली, लेकिन वे अब कटे-कटे रहने लगे हैं। नीतीश नाराजगी की हालत में कभी बोलते-बताते नहीं, लेकिन मनोनुकूल स्थिति न रहने पर वे झटका भी देते रहे हैं। उनकी नाराजगी का पहला एहसास तो उसी दिन हो गया था, जब चार्टर्ड प्लेन से बेंगलुरु जाने के बावजूद वे प्रेस कांफ्रेस में शामिल हुए बगैर समय का अभाव बता कर पटना लौट गए थे। बीजेपी और आरजेडी के साथ उनके आने-जाने का सिलसिला भी इसी तरह की वजहों से रहा है। वे अब विपक्षी गठबंधन के कितने आग्रही रह गए हैं, इसका अंदाजा इस बात से ही लग गया कि मीडिया बायकॉट के कोआर्डिनेशन कमिटी के फैसले की किसी जानकारी से उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने सफाई भी दे डाली कि वे तो मीडिया की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं। नीतीश की कोफ्त यह हो सकती है कि उन्होंने विपक्षा को एकजुट करने के लिए पीएम पद की दावेदारी भी छोड़ी, पर एक अदद संयोजक पद के लिए तरस गए। हालांकि बातचीत में वे अब भी विपक्षी गठबंधन के पक्ष में ही दिखते हैं।